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आज मै जब अपने ब्लॉग का नाम सोचा तो काफी विचार करने के बाद एक ही
चीज़ स्पष्ट दिखाई दी वो है अंधेर गर्दी . वो कहते है ना अंधेर नगरी चौपट रजा . बस वो
मैंने title रखा.
पर क्यों? इसका जवाब कभी बाज़ार जाओ तो मिल जायेगा . लहसुन तो अब सुनार के दुकानों पे मिलने योग्य हो गया है . प्याज़ तो खैर सभी जानते है . टमाटर भी प्याज़ का रंग देख कर लाल हुआ जाता है . ऐसे में महज़ ५ हज़ार कमाने वाले हम ८० प्रतिशत भारतीय
लोग कहा जाये.
ये थे एक तस्वीर . अब दूसरी तस्वीर देखिये . लाखो के वेतन भत्ते पाने वाले सांसद कैंटीन में खाने की दर बढ़ाये जाने से नाराज़ है (नवभारत times ,३० dec ). !!!!
अब रेट सुनिए :
चाय :५० पैसे से बढ़कर दो रूपये हुए
समोसा : एक रुपया
डोसा : २ रुपया
अब आप बताओ की ये ज्यादती नहीं है इन गरीब सांसदों (??)के साथ ..
अब एक खबर : शरद पवार माननीय मंत्री …
“कीमत बढ़ने के लिए मीडिया जिम्मेदार है”
“जनता जिम्मेदार है महंगाई के लिए”
“लोग ज्यादा खाने लगे है इसलिए महंगाई बढ़ी है ”
जी हुजुर हम ही जिम्म्मेदार है जो बिल्ली को दूध की रखवाली सौप गए है.
अब हम बस खम्भा नोच सकते है या फिर खुद का घर जलते देख तमाशा देख सकते है
आपको करोडो गिनने से फुर्सत रहेगी तब न बजार या खेत का हाल लोगे.
एक खबर :
सुप्रीमकोर्ट :
” अनाज सड रहा है तो गरीबो में क्यों नहीं बाट देते ”
जवाब:
” अनाज बाटना व्यावहारिक नहीं है”
कैसे होगी फिर शराब कैसे बनेगी ..
:खैर जो हो मै तो रो भी नहीं सकता . अनसु ही सुख गए है . जारी है.
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