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आज मै थोड़े हल्के फुल्के अंदाज़ में ये लेख लिख रहा हु कृपया इसे अन्यथा न ले .
अगर किसी को दुख हो तो मै क्षमा प्रार्थी हु.
फिल्म उद्योग और राजनेताओ में एक समानता है. नेता जैसे एक विवादस्पद बयान देते है फिर
बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा की तर्ज़ पर चर्चा में आ जाते है तो अगला बयान आता है की हमारे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया. वैसे ही फिल्मो में कुछ विवादित अंश डाल
कर प्रसिद्ध होकर फिर उसे हटा लेते है. फिर चाहे वो नचले गाने में मोची सुनार विवाद हो या मुन्नी बदनाम में झंडू बाम . झंडू बाम तो खैर प्रचार पाके खुश है . ऐसे ही एक गाना है
जो सुखविंदर सिंह ने गाया है तिल तिल तारा मेरा तेली का तेल . विवाद हुआ और इस शब्द को हटा कर वह एक बीप डाल दिया . आज जब मै वो गाना सुन रहा था तो
एक छोटी सी कहानी याद आ गई .
एक आदमी के पास एक तोता था. वह बहुत अच्छा बोलता था. पर एक आदमी जो रोज़ वहा
से गुज़रता था उससे तोता बहुत चिढ़ता था . जब भी वह वहा से गुज़रता था तोता आवाज़ लगता उसे गाली देकर. आदमी चार दिन तक तो चुप रहा पर पांचवे दिन उसके मालिक से जाकर शिकायत कर दी . मालिक गुस्से में तोते को बहुत daanta .
अगले दिन जब वो आदमी वहा से गुज़रा तो तोते को देखते हुए जा रहा था . शायद उसे भी गाली की उम्मीद थी . पर तोता भी चुप चाप उसे ही देख रहा था . थोडा दूर जाते ही तोता बोला ” समझ तो गाया ही होगा “.
तो यह है हमारी बीप संस्कृति .
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