अंधेरगर्दी
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मेरी बहुत पुरानी तुकबंदी पेश है, मुलाहिजा फरमाएं…………
कहीं चाँद राहों में खो गया ,
कहीं चांदनी भी भटक गयी .
में चिराग हूँ वो भी बुझा हुआ ,
मेरी रात कैसे चमक गयी.
मेरी दास्तान का वजूद था ,
तेरी नर्म पलको की छांव में .
कभी हम मिले तो भी क्या मिला ,
वोही दूरियां …. … वोही फासले.
ना कभी हमारे क़दम बढे ,
ना तुम्हारी झिझक गयी.
तुझे भूल जाने की कोशिशें,
कभी कामयाब ना हो सकी .
तेरी याद शक -ए -गुलाब है ,
जो हवा चली तो लचक गयी .
तेरे हाथ से मेरे होंठों तक ,
वोही इंतज़ार की प्यास है ……… .
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